जय जय तुम मोह निवार वीर,
जय जय अरिजीतन परम धीर;
जय जय मनमथमर्दन मृगेश,
जय जय जम जीतनको रसेश. ५
जय जय चतुरानन हो प्रतक्ष,
जय जय जग-जीवन सकल रक्ष;
जय जय तुम क्रोध कषाय जीत,
जय जय तुम मान हर्यो अजीत. ६
जय जय तुम मायाहरन सूर,
जय जय तुम लोभनिवार मूर;
जय जय शत इंद्रन बंदनीक,
जय जय अरि सकल निकंदनीक. ७
जय जय जिनवर देवाधिदेव,
जय जय तिहुंयन भवि करत सेव;
जय जय तुम ध्यावहिं भविक जीव,
जय जय सुख पावहिं ते सदीव. ८
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श्री जिनेन्द्र – स्तवन
(राग – मेरी भावना)
भविक तुम वंदहु मनधर भाव,
जिन-प्रतिमा जिनवरसी कहिये. भविक०
स्तवन मंजरी ][ ९५