Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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जाके दरस परमपद प्रापति,
अरु अनंत शिवसुख लहिये. भविक०
निज स्वभाव निरमल ह्वै निरखत,
करम सकल अरि घट दहिये;
सिद्ध समान प्रगट इह थानक,
निरख निरख छबि उर गहिये. भविक०
अष्ट कर्मदल भंज प्रगट भई,
चिन्मूरति मनु बन रहिये;
इहि स्वभाव अपनो पद निरखहु,
जो अजरामर पद चहिये. भविक०
त्रिभुवन माहि अकृत्रिम कृत्रिम,
वंदन नितप्रति निरवहिये;
महा पुण्यसंयोग मिलत है,
‘भईया’ जिन प्रतिमा सरदहिये. भविक०
श्री जिनवाणीस्तवन
(मेरी भावना)
जिनवाणी को को नहिं तारे, जिन०टेक
मिथ्याद्रष्टि जगत निवासी, लही समकित निज काज सुधारे,
गौतम आदिक श्रुतिके पाठी, सुनत शब्द अघ सकल निवारे; जिन०
९६ ][ श्री जिनेन्द्र