Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परदेशी राजा छिनवादी, भेद सुतत्त्व भरम सब टारे,
पंचमहाव्रत धर तू ‘भैया’ मुक्तिपथ मुनिराज सिधारे.
श्री जिनवाणीस्तवन
(रागमेरी भावना)
जिनवाणी सुनि सुरत संभारे, जिन०टेक
सम्यग्द्रष्टि भवननिवासी, गह वृत केवल तत्त्व निहारे. जिन०
भये धरणेन्द्र पद्मावति पलमें, जुगलनाग प्रभु पास उबारे;
बाहुबलि बहुमान धरत है, सुनत विनत शिवसुख अवधारे. जिन०
गणधर सबै प्रथम धुनि सुनिके; दुविध परिग्रह संग निवारे,
गजसुकुमाल वरस वसुहीके, दिक्षा ग्रहत करम सब टारे. जिन०
मेघकुंवर श्रेणिकको नंदन, वीरवचन निजभवहिं चितारे;
औरहु जीव तरे जे ‘भैया’, ते जिनवचन सबै उपगारे. जिन०
श्री जिनवाणीस्तवन
(छप्पय)
बंदहु ॠषभ जिनेन्द्र, अजित संभव अभिनन्दन;
सुमति सु पद्म सुपार्श्व; बहुरि चन्द्रप्रभ वंदन;
सुविधि शीतल श्रेयांश, वासुपूजहिं सुखदायक,
विमल अनंत रु धर्म, शान्ति कुंथु जु शिवनायक;
स्तवन मंजरी ][ ९७
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