Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अर मल मुनिसुव्रत नमत, पाप पुंज पंकति हरिय,
नमि नेम पार्श्व जिन वीर कहं, भवि त्रिकाल वंदन करिय. १
(कवित्तमनहर)
मिथ्यागढ भेद थयो अंधकार नाश गयो,
सम्यक् प्रकाश लयो, ज्ञानकला भासी है;
अणुव्रत भाव धरें महाव्रत अंगी करे,
श्रेणीधारा चढे कोई प्रकृति विनासी है;
मोहको पसारो डारि घातियासु कर्म टारि,
लोकालोकको निहारि भयो सुखरासी है;
सर्वही विनाश कर्म, भयो महादेव पर्म,
वंदै भव्य ताहि नित लोक अग्रवासी है.
नेकु राग द्वेष जीत भये वीतराग तुम,
तीनलोक पूज्यपद येहि त्याग पायो है;
यह तो अनूठी बात तुम ही बताय देहु,
जानी हम अबहीं सुचित्त ललचायो है;
तनिकहू कष्ट नाहिं, पाईये अनन्त सुख,
अपने सहजमांहिं आप ठहरायो है;
यामें कहा लागत है, परसंग त्यागतही,
जारि दीजे भ्रम शुद्ध आपही कहायो है.
वीतराग देव सो तो बसत विदेहक्षेत्र,
सिद्ध जो कहावै शिवलोक मध्य लहिये;
आचारज उवझाय दुहिमें न कोऊ यहां,
साधु जो बताये सो तो दक्षिणमें कहिये;
९८ ][ श्री जिनेन्द्र