Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 99 of 438
PDF/HTML Page 117 of 456

 

background image
श्रावक पुनीत सोऊ विद्यमान यहां नाहिं,
सम्यक्के संत कोऊ जीव सरदहिये;
शास्त्रकी शरधा तामें बुद्धि अति तुच्छ रही,
पंचम समैमें कहो कैसे पंथ गहिये.
तूही वीतराग देव राग द्वेष टारि देख,
तूही तो कहावै सिद्ध अष्ट कर्म नासतैं;
तूही तो आचारज है आचरै जु पंचाचार,
तूही उवझाय जिनवाणीके प्रकाशतैं;
परको ममत्व त्याग तूही है सो ॠषिराय,
श्रावक पुनीत व्रत एकादश भासतें;
सम्यक् स्वभाव तेरो शास्त्र पुनि तेरी वाणी,
तूही ‘भैया’ ज्ञानी निजरूपके निवासतें.
श्री जिनगुणमाला
(दोहा)
तीर्थंकर त्रिभुवन तिलक तारक तरन जिनंद;
तास चरन वंदन करौं, मनधर परमानंद.
गुण छीयालिस संयुगत, दोष अठारह नाश;
ये लक्षण जा देवमें, नित प्रति वंदों तास.
(चौपाई)
दश गुण जासु जनमतैं होय, प्रस्वेदादिक दोष न कोय,
निर्मलता मलरहित शरीर, उज्वल रुधिर वरण जिन खीर.
वज्र वृषभ नाराच प्रमान, सम सु चतुर संस्थान बखान;
शोभन रूप महा दुतिवन्त, परम सुगन्ध शरीर वसंत.
स्तवन मंजरी ][ ९९