Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सहस अठोत्तर लच्छन जास, बल अनंत वपु दीखै तास;
हितमित वचन सुधासे झरैं, तास चरन भवि वंदन करैं.
दश गुण केवल होत प्रकाश, परम सुभिक्ष चहूं दिश भास;
द्वयसौ जोजन मान प्रमान, चलत गगनमें श्री भगवान.
वपुतैं प्राणिघात नहि होय, आहारादिक क्रिया न कोय;
विन उपसर्ग परम सुखकार, चहुंदिश आनन दीखहिं चार.
सब विद्या स्वामी जग वीर, छाया वर्जित जासु शरीर;
नख अरु केश बढैं नहि कहीं, नेत्र पलक पल लागे नहीं.
चौदह गुण देवन कृत होय, सर्व मागधी भाषा सोय;
मैत्री भाव जीव सब धरैं, सर्वकाल तरु फूलन झरैं.
दर्पणवत निर्मल ह्वै मही, समवशरण जिन आगम कही;
शुद्ध गंध दक्षिण चल पौन, सर्व जीव आनंद अनुभौन. १०
धूलि रु कंटक वर्जित भूमि, गंधोदक बरषत है झूमि;
पद्म उपरि नित चलत जिनेश, सर्व नाज उपजहिं चहुं देश. ११
निर्मल होय आकाश विशेष, निर्मल दशा धरतु है भेष;
धर्मचक्र जिन आगे चलैं, मंगल अष्ट पाप तम दलै. १२
प्रातिहार्य वसु आनँदकंद, वृक्ष अशोक हरै दुःख द्वंद;
पुहुप वृष्टि शिव सुखदातार, दिव्यध्वनि जिन जै जै कार. १३
चौसठ चँवर ढरहिं चहुंओर, सेवहिं इंद्र मेघ जिन मोर;
सिंहासन शोभन दुतिवंत, भामंडल छवि अधिक दिपंत. १४
१०० ][ श्री जिनेन्द्र