(चौपाई १६ मात्रा)
प्रातहिं उठि जिनवर प्रणमीजै, भावसहित श्री सिद्ध नमीजै;
आचारज पद वंदन कीजै, श्री उवझाय चरण चित्त दीजै. २
साधु तणा गुण मन आणीजै, षट्द्रव्य भेद भला जानीजै;
श्री जिनवचन अमृतरस पीजै, सब जीवनकी रक्षा कीजै. ३
लग्यो अनादि मिथ्यात्व वमीजै, त्रिभुवनमांही जिम न पसीजै;
पांचौं इन्द्री प्रबल दमीजै, निज आतम रस मांही रमीजै. ४
परगुण त्याग दान नित कीजै, शुद्धस्वभाव शील पालीजै;
अष्ट करम तज तप यह कीजै, शुद्धस्वभाव मोक्ष पामीजै. ५
(दोहा)
इहविधि श्री जिनचरण नित, जो वंदत धर भाव;
ते पावहिं सुख शाश्वते, ‘भैया’ सुगम उपाव. ६
❋
श्री नंदीश्वरद्वीपकी जिनप्रतिमा – स्तुति
(दोहा)
वंदों श्री जिनदेवको, अरु वंदों जिनवैन;
जस प्रसाद इह जीवके, प्रगट होय निज नैन. १
श्री नंदीश्वर-द्वीपकी, महिमा अगम अपार;
कहूं तास जयमालिका, जिनमतके अनुसार. २
(चौपाई)
एक अरब तिरेसठ कोडि, लख चौरासी ता परि जोडि;
एते योजन महा प्रमान, अष्टम द्वीप नंदीश्वर जान. ३
१०२ ][ श्री जिनेन्द्र