वही उपख्यान साचो देखिये जहांन बीचि,
वेश्याघर पूत भयो बाप कहै कौनसों. २
वीतराग नामसेती काम सब होंहि नीके,
वीतराग नामसेती धामधन भरिये;
वीतराग नामसेती विघन विलाय जाय,
वीतराग नामसेती भवसिंधु तरिये;
वीतराग नामसेती परम पवित्र हूजे,
वीतराग नामसेती शिववधू वरिये;
वीतराग नामसम हितू नाहि दूजो कोऊ,
वीतराग नाम नित हिरदैमें धरिये. ३
❀
श्री जिन – स्तुति
(सवैया)
देख जिनमुद्रा जिनरूपको स्वरूप गहै,
रागद्वेषमोहको बहाय डारै पलमें;
लोकालोकव्यापी ब्रह्म कर्मसों अबंध वेद,
सिद्धको स्वभाव सीख ध्यावे शुद्ध थलमें;
ऐसे वीतराग जूके बिंब हैं विराजमान,
भव्यजीव लहै ज्ञान चेतनके दलमें;
मांझनी ओ मंडपकी रचना अनूप बनी,
राणापुर रत्न सम देख्यो पुण्य फलमें. १
स्तवन मंजरी ][ १०५