सुबुद्धि प्रकाशमें सु आतम विलासमें सु,
थिरता अभ्यासमें सुज्ञानको निवास है;
ऊरधकी रीतिमें जिनेशकी प्रतीतिमें सु,
कर्मनकी जीतमें अनेक सुख भास है;
चिदानंद ध्यावतही निज पद पावतही,
द्रव्यके लखावतही देख्यो सब पास है;
वीतराग वानी कहै सदा ब्रह्म ऐसें भास,
सुखमें सदा निवास पूरन प्रकाश है. २
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तीनलोकके अकृत्रिम चैत्यालयकी स्तुति
(चोपाई)
प्रणमहुं परम देवके पाय, मन वच भाव सहित शिरनाय;
अकृत्रिम जिनमंदिर जहां, नितप्रति वंदन कीजे तहां. १
प्रथम पताल लोकविस्तार, दश जातिनके देव कुमार;
तिनके भवन भवन प्रति जोय, एक एक जिनमंदिर होय. २
असुरकुमारनके परमान, चौसठ लाख चैत्य भगवान;
नागकुमारनके इम भाख, जिनमंदिर चौरासी लाख. ३
हेमकुमारनके परतक्ष, जिनमंदिर हैं बहतर लक्ष;
विदुतकुमारनके भवनाल, लक्ष छिहत्तर नमूं त्रिकाल. ४
सुपर्णकुमारनके सब जान, लक्ष बहत्तर चैत्य प्रमान;
अगनिकुमारनके प्रासाद, लक्ष छिहत्तर बने अनाद. ५
१०६ ][ श्री जिनेन्द्र