वातकुमार भवन जिनगेह, लक्ष छिहत्तर बंदहुं तेह;
उदधिकुमार अनोपम धाम, लक्ष छिहत्तर करुं प्रणाम. ६
दीपकुमार देवके नांव, लक्ष छिहत्तर नमुं तिहँ ठांव;
लक्ष छ्यानवे दिग् कुमार, जिनमंदिर सोहै जैकार. ७
ये दश भवन कोटि जहँ सात, लक्ष बहत्तर कहे विख्यात;
तिन जिनमंदिरको त्रैकाल; वंदन करुं भवन पाताल. ८
मध्यलोक जिनचैत्य प्रमान, तिन प्रति बंदों मनधर ध्यान;
पंचमेरु अस्सी जिन भौन, तिनकी महिमा बरने कौन. ९
वीस बहुर गजदंत निहार, तहां नमूं जिनचैत्य चितार;
तीस कुलाचल पर्वत शीस, जिनमंदिर वंदों निशदीस. १०
विजयारध पर्वतपर कहे, जिनमंदिर सौशत्तर लहे;
सुरद्रुमन दश चैत्य प्रमान, वंदन करों जोर जुगपान. ११
श्रीवक्षार गिरहिं उर धरों, चैत्य अशी नित वंदन करों;
मनुषोत्तर परबत चहुं ओर, नमहुं चार चैत्य करजोर. १२
और कहूं जिनमंदिर थान, इक्ष्वाकारहिं चार प्रमान;
कुंडलगिरिकी महिमा सार, चैत्य जु चार नमूं निरधार. १३
रुचिकनाम गिरिमहा बखान, चैत्य जु चार नमूं उर आन;
नंदीश्वर बावन गिरराव, बावन चैत्य नमहुं धरभाव. १४
मध्यलोक भविके मन भावन, चैत्य चारसौ और अठावन;
तिन जिनमंदिरको निशदीस, वंदन करों नाय निज शीस. १५
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स्तवन मंजरी ][ १०७