श्री चतुर्विंशतितीर्थंकर – स्तुति
(दोहा)
वीस चार जगदीशको, बंदों शीस नवाय,
कहुं तास जयमालिका, नामकथन गुण गाय. १
(पद्धरि छन्द १६ मात्रा)
जय जय प्रभु ॠषभ जिनेन्द्रदेव,
जय जय त्रिभुवनपति करहिं सेव;
जय जय श्री अजित अनंत जोर,
जय जय जिहं कर्म हरे कठोर. २
जय जय प्रभु संभव शिवसरूप,
जय जय शिवनायक गुण अनूप;
जय जय अभिनंदन निर्विकार,
जय जय जिहिं कर्म किये निवार. ३
जय जय श्री सुमति सुमति प्रकाश,
जय जय सब कर्म निकर्म नाश;
जय जय पदमप्रभ पद्म जेम,
जय जय रागादि अलिप्त नेम. ४
जय जय जिनदेव सुपार्श्व पास,
जय जय गुणपुंज कहै निवास;
११२ ][ श्री जिनेन्द्र