गुणी गुप्ती गुणवाहक बली, जगतदिवाकर कौतूहली;
क्रमवर्ती करुणामय क्षमी, दशावतारी दीरघ दमी. ५
अलख अमूरति अरस अखेद, अचल अबाधित अमर अवेद;
परम परमगुरु परमानन्द, अन्तरजामी आनँदकन्द. ६
प्राणनाथ पावन अमलान, शीलसदन निर्मल परमान;
तत्त्वरूप तपरूप अमेय, दयाकेतु अविचल आदेय. ७
शीलसिन्धु निरुपम निर्वाण, अविनाशी अस्पर्श अमान;
अमल अनादि अदीन अछोभ, अनातंक अज अगम अलोभ. ८
अनवस्थित अध्यातमरूप, आगमरूपी अघट अनूप;
अपट अरूपी अभय अमार, अनुभवमंडन अनघ अपार. ९
१विमलपूतशासन दातार, दशातीत उद्धरन उदार;
नभवत पुंडरीकवत् हंस, करुणामन्दिर एनविध्वंस. १०
निराकार निहचै निरमान, नानारसी लोकपरमान;
सुखधर्मी सुखज्ञ सुखपाल, सुन्दर गुणमन्दिर गुणमाल. ११
(दोहा)
अम्बरवत आकाशवत, क्रियारूप करतार;
केवलरूपी कौतूकी, कुशली करुणासागर. १२
(चौपाई)
ज्ञानगम्य अध्यातमगम्य, रमाविराम रमापति रम्य;
अप्रमाण अघहरण पुराण, अनमित लोकालोक प्रमाण. १३
१. ‘विपुल’ ऐसा भी पाठ है
११६ ][ श्री जिनेन्द्र