परमपवित्र असंख्यप्रदेशी, करुणासिंधु अचिंत्य अभेषी;
जगतसूर निर्मल उपयोगी, भद्ररूप भगवन्त अभोगी. ५७
भानोपम भरता भवनासी, द्वन्दविदारण बोधविलासी;
कौतुकनिधि कुशली कल्याणी, गुरु गुसाँई गुणमय ज्ञानी. ५८
निरातंक निरवैर निरासी, मेधातीत मोक्षपदवासी;
महाविचित्र महारसभोगी, भ्रमभंजन भगवान अरोगी. ५९
कल्मषभंजन केवलदाता धाराधरन धरापति धाता;
प्रज्ञाधिपति परम चारित्री, परमतत्त्ववित् परमविचित्री. ६०
संगातीत संगपरिहारी, एक अनेक अनन्ताचारी;
उद्यमरूपी ऊरधगामी, विश्वरूप विजयी विश्रामी. ६१
(दोहा)
धर्मविनायक धर्मधुज, धर्मरूप धर्मज्ञ;
रत्नगर्भ ❋राधारमण, रसनातीत रसज्ञ. ६२
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(रूप चौपाई)
परमप्रदीप परमपददानी, परमप्रतीति परमरसज्ञानी;
परमज्योति अघहरन अगेही, अजित अखंड अनंत अदेही. ६३
अतुल अशेष अरेष अलेषी, अमन अवाच अदेख अभेषी;
अकुल अगूढ अकाय अकर्मी, गुणधर गुणदायक गुणमर्म्मी. ६४
❋ आराधनामां रमनारा.
स्तवन मंजरी ][ १२३