चोथा स्वामी चरणयुगले हुं चहुं नित्य रहेवा.
देवो सेव्या कुमति वशथी में बहुये मुनीन्द्र;
तो ये ना’व्यो भवभ्रमणथी छूटकारो लगारे;
शान्तिदाता सुमतिजिनजी देव छे तुं ज मारे.
पद्मो जेवां प्रभु चरणना संगथी दीप्ति धारी;
देखी भव्यो अति उलटथी हर्षनां आंसु लावे,
ते श्री पद्मप्रभु चरणमां हुं नमुं पूर्ण भावे.
भव्यो पूजे भय रहित थई आपने पूर्ण व्हाले;
पामे मुक्ति भवभय थकी जे स्मरे नित्यमेव,
नित्ये वंदुं तुम चरणमां श्री सुपार्श्वेष्ट देव.
तेवी रीते कठीण हृदये हर्षनो धोध व्हे छे;