Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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एकांत हरण सुप्रमाण सिद्ध;
नहिं जान सकैं तुमसे विरुद्ध. ४१
है अस्ति कथंचित् और नास्ति,
भगवान् तुझ मतमें यह तथास्ति;
सत् असत्मई भेद रु अभेद,
हैं वस्तु बीच नहिं शून्य वेद. ४२
‘यह है वह ही’ है नित्य सिद्ध,
‘यह अन्य भया’ यां क्षणिक सिद्ध;
नहि है विरुद्ध दोनों स्वभाव,
अंतर बाहर साधन प्रभाव. ४३
पद एकानेक स्ववाच्य तास,
जिम वृक्ष स्वतः करते विकास;
यह शब्द स्यात् गुण मुख्यकार,
नियमित नहिं होवे बाध्यकार. ४४
गुण मुख्य कथक तव वाक्य सार,
नहिं पचत उन्हें जो द्वेष धार;
लखि आप्त तुम्हें इन्द्रादिदेव,
पदकमलनमें मैं करहुं सेव. ४५
(१०) श्री शीतलनाथस्तुति
(छन्दः स्रग्विणी)
तव अनघ वाक्य किरणें, विशद ज्ञानपति,
शांत-जल-पूरिता, शमकरा सुष्ठुमति;
स्तवन मंजरी ][ ३९