जिम मेघ रहित हो सूर्य एकी प्रकाशे,
तिम तुम या जगमें एक अद्भुत प्रकाशे. ५१
है विधिषेध वस्तु और प्रतिषेध रूपं,
जो जाने युगपत् है प्रमाण स्वरूपं;
कोई धर मुख्यं अन्यको गौण करता,
नय अंश प्रकाशी पुष्ट द्रष्टांत करता. ५२
वक्ता इच्छासे मुख्य इक धर्म होता,
तब अन्य विवक्षा विन गौणता मांहि सोता;
अरिमित्र उभयविन एक जन शक्ति रखता,
है तुज मत द्वैतं, कार्य तब अर्थ करता. ५३
जब होय विवादं सिद्ध द्रष्टांत चलता,
वह करता सिद्धी जब अनेकांत पलता;
एकांत मतोंमें साधना होय नाहीं,
तव मत है साचा, सर्व सधता तहां ही. ५४
एकांत मतों के चूर्ण करता तिहारे,
न्यायमई बाणं मोहरिपु जिन संहारे;
तम ही तीर्थंकर केवल ऐश्वर्य धारी,
तातें तेरी ही भक्ति करनी विचारी. ५५
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(१२) श्री वासुपूज्य – स्तुति
(छंद)
तुम्हीं कल्याण पंचमें पूजनीक देव हो,
शक्र राज पूजनीक वासुपूज्य देव हो;
स्तवन मंजरी ][ ४१