Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 42 of 438
PDF/HTML Page 60 of 456

 

background image
मैं भी अल्पधी मुनीन्द्र पूज आपकी करूं;
भानुके प्रपूज काज दीपकी शिखा धरूं. ५६
वीतराग हो तुम्हें न हर्ष भक्ति कर सके,
वीतद्वेष हो तुम्हीं, न क्रोध शत्रु हो सके;
सार गुण तथापि हम कहें महान भावसे,
हो पवित्र चित्त हम हटें मलीन भावसे. ५७
पूजनीक देव आप पूजते सुचावसे,
बांधते महान पुण्य जन विशुद्ध भावसे;
अल्प अघ न दोषकर यथा न विष कणा करे,
शीत शुचि समुद्र नित्य शुद्ध ही रहा करे. ५८
वस्तु बाह्य है निमित्त पुण्य पाप भावका,
है सहाय मूलभूत अन्तरंग भावका;
वर्तता स्वभावमें उसे सहायकार है,
मात्र अन्तरंग हेतु कर्म बंधकार है. ५९
बाह्य अंतरंग हेतु पूर्णता लहाय है,
कार्यसिद्ध तहां होय द्रव्यशक्ति पाय है;
और भांति मोक्षमार्ग होय ना भवीनिको,
आप ही सुवंदनीक हो गुणी ॠषीनिको. ६०
(१३) श्री विमलनाथस्तुति
(भुजंगप्रयात छंद)
नित्यत्व अनित्यत्व नयवाद सारा,
अपेक्षा विना आपपर नाशकारा;
४२ ][ श्री जिनेन्द्र