Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तुम जीत लिया निज रुचि प्रसाद,
भगवन् अनन्त जिन सत्य वाद. ६६
कल्वषकारी रिपु चव कषाय,
मन्मथमद रोग जु तापदाय;
निज ध्यान औषधी गुण प्रयोग,
नाशे ह्वे सबवित् सयोग. ६७
है खेदअम्बु भयगण-तरंग,
ऐसी सरिता तृष्णा अभंग;
सोखी अभंग रविकर प्रताप,
हो मोक्ष-तेज जिनराज आप. ६८
तुम प्रेम करें वे धन लहंत,
तुम द्वेष करें हो नाशवंत;
तुम दोनों पर हो वीतराग,
तुम धारत हो अद्भुत सुहाग. ६९
तुम ऐसे हो वैसे मुनीश,
मुझ अल्पबुद्धिका कथन इश;
नहिं समरथ सर्व माहात्म ज्ञान,
सुखकर अमृत-सागर समान. ७०
(१५) श्री धर्मनाथस्तुति
(स्रग्विणी छंद)
धर्म सत् तीर्थको जग प्रवर्तन किया,
धर्म ही आप हैं साधुगण लख लिया;
४४ ][ श्री जिनेन्द्र