यतीश पद महान धार दयामूर्ति बन गए,
आपहीसे आपके कुपाप सब शमन भए. ७६
परम विशालचक्रसे जु सर्व शत्रु भयकरं,
नरेन्द्रके समूहको सुजीत चक्रधर वरं;
हुए यतीश आत्मध्यान-चक्रको चलाईया,
अजेय मोह नाशके महाविराग पाईया. ७७
राजसिंह राज्यकीय भोग या स्वतंत्र हो,
शोभते नृपोंके मध्य राज्य लक्ष्मीतंत्र हो;
पायके अर्हंत लक्ष्मी आपमें स्वतंत्र हो,
देव नर उदार सभा शोभते स्वतंत्र हो. ७८
चक्रवर्ति पद नृपेन्द्र-चक्र हाथ जोडिया,
यतीश पदमें दयार्द्र धर्मचक्र वश किया;
अर्हन्त पद देव-चक्र हाथ जोड नत किया,
चतुर्थ शुक्लध्यान कर्म नाश मोक्ष वर लिया. ७९
रागद्वेष नाश आत्मशांतिको बढाईया,
शरण जु लेय आपकी वही सुशांति पाईया;
भगवन् शरण्य शांतिनाथ भाव ऐसा है सदा,
दूर हो संसार क्लेश भय न हो मुझे कदा. ८०
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४६ ][ श्री जिनेन्द्र