Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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(१७) श्री कुन्थुनाथस्तुति
(छंद तोटक)
जय कुंथुनाथ नृप चक्रधरं,
यति हो कुन्थ्वादि दयार्द्र परं;
तुम जन्म-जरा-मरणादि शमन,
शिवहेतु धर्मपथ प्रगट करन. ८१
तृष्णाग्नि दहत नहि होय शमन,
मन-इष्ट भोगकर होय बढन;
तन-ताप-हरण कारण भोगं,
इम लख विजविद् त्यागे भोगं. ८२
बाहर तप दुष्कर तुम पाला,
जिन आतम ध्यान बढे आला;
द्वय ध्यान अशुभ नहिं नाथ करे,
उत्तम द्वय ध्यान महान धरे. ८३
निज घाती कर्म विनाश किये,
रत्नत्रय तेज स्ववीर्य लिये;
सब आगमके वक्ता राजैं,
निर्मल नभ जिम सूरज छाजैं. ८४
यतिपति! तुम केवलज्ञान धरे,
ब्रह्मादि अंश नहि प्राप्त करे;
निज हित रत आर्य सुधी तुमको,
अज ज्ञानी अर्ह नमैं तुमको. ८५
स्तवन मंजरी ][ ४७