Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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(१८) श्री अरनाथस्तुति
(पद्धरी छंद)
गुण थोडे बहुत कहे बढाय,
जगमें थुति सो ही नाम पाय;
तेरे अनन्त गुण किम कहाय,
स्तुति तेरी कोई विधि न थाय. ८६
तो भी मुनीन्द्र शुचि कीर्ति धार,
तेरा पवित्र शुभ नाम सार;
कीर्तनसे मन हम शुद्ध होय,
तातैं कहना कुछ शक्ति जोय. ८७
तुम मोक्ष चाहको धार नाथ,
जो भी लक्ष्मी सम्पूर्ण साथ;
सब चक्र चिह्न सह भरतराज्य,
जीरण तृणवत् छोडा सुराज्य. ८८
तुम रूप परम सुन्दर विराज,
देखनको उमगा इन्द्रराज;
दो-लोचन-धर कर सहस नयन,
नहिं तृप्त हुआ आश्चर्य भरन. ८९.
जो पापी सुभट-कषाय-धार,
ऐसा रिपु मोह अनर्थकार;
सम्यक्त्व ज्ञान संयम सम्हार,
इन शस्त्रनसे कीना संहार. ९०
४८ ][ श्री जिनेन्द्र