Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वथा नियमका त्यागकार,
जिस नय श्रुत देखा पुष्टकार;
है ‘स्यात्’ शब्द तुम मत मंझार,
निज घाती अन्य न लखें सार. १०२
है अनेकान्त भी अनेकान्त,
साधत प्रमाण नय, विना ध्वांत;
सप्रमाण द्रष्टि है अनेकान्त,
कोई नय-मुखसे है एकांत. १०३
निरूपम प्रमाणसे सिद्ध धर्म,
सुखकर हितकर गुण कहत मर्म;
अरजिन! तुम सम जिन तीर्थनाथ,
नहिं कोई भवि बोधक सनाथ. १०४
मति अपनी के अनुकूल नाथ!
आगम जिन कहता मुक्तिनाथ!
तद्वत् गुण अंश कहा मुनीश!
जासे क्षय हों मम पाप इश! १०५
(१९) श्री मल्लिनाथस्तुति
(छंद तोटक)
जिन मल्लिमहर्षि प्रकाश किया,
सब वस्तु सुबोध प्रत्यक्ष लिया;
स्तवन मंजरी ][ ५१