Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 53 of 438
PDF/HTML Page 71 of 456

 

background image
साधुगणकी सभामें सुशोभित भये,
चंद्र जिम उडुगणोंसे सुवेष्ठित भये. १११
मोरके कंठ सम नीलरंग रंग है,
काममद जीतकर शांतिमय अंग है;
नाथ! तेरी तपस्या जनित अंग जो,
शोभता चंद्रमंडल मई रंग जो. ११२
आपके अंगमें शुक्ल ही रक्त था,
चंद्रसम निर्मल रजरहित गंध था;
आपका शांतिमय अद्भुतं तन जिनं,
मनवचनका प्रवर्तन परम शुभ गणं. ११३
जनन व्यय ध्रौव्य लक्षणं जगत् प्रतिक्षणं,
चित अचित आदिसे पूर्ण यह हरक्षणं;
यह कथन आपका, चिह्न सर्वज्ञका,
है वचन आपका आप्त उत्कृष्टका. ११४
आपने अष्ट कर्मं कलंकं महा,
निरुपमं ध्यान बलसे सभी है दहा;
भवरहित मोक्षसुखके धनी हो गए,
नाश संसार हो भाव मेरे भए. ११५
(२१) श्री नमिनाथ जिनस्तुति
(स्रग्विणी छंद)
साधु जब स्तुति करे भाव निर्मल धरे,
स्तुत्य हो वा नहीं, फल करै ना करे;
स्तवन मंजरी ][ ५३