Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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(२२) श्री नेमिनाथ जिनस्तुति
(छंद तोटक)
भगवन् ॠषि ध्यान सु शुक्ल किया,
इंधन चहुं कर्म जलाय दिया;
विकसित अम्बुजवत् नेत्र धरें,
हरिवंश-केतु, नहिं जरा धरें. १२१
निर्दोष विनय दम वृष कर्ता,
शुचि ज्ञान किरण जन हित कर्ता;
शीलोदधि नेमि अरिष्ट जिनं,
भव नाश भए प्रभु मुक्त जिनं. १२२
तुम पादकमल युग निर्मल हैं,
पदतल-द्वय रक्त-कमल-दल है;
नख चन्द्र किरण मंडल छाया,
अति सुंदर शिखरांगुलि भाया. १२३
इन्द्रादि मुकुट मणि किरण फिरै,
तव चरण चूम्बकर पुण्य भरै;
निज हितकारी पंडित मुनिगण,
मंत्रोच्चारी प्रणमैं भविगण. १२४
द्युतिमय रविसम रथचक्र किरण,
करती व्यापक जिस अंग धरन;
है नील जलद सम तन नीलं,
है केतु गरुड जिस कृष्ण हलं. १२५
स्तवन मंजरी ][ ५५