Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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(२३) श्री पार्श्वनाथ जिनस्तुति
(पद्धरी छंद)
जय पार्श्वनाथ अति धीर वीर,
नीले वादल विजली गंभीर;
अति उग्र वज्र जल पवन पात,
वैरी उपद्रुत नहिं ध्यान जात. १३१
धरणेन्द्र नाग निज फण प्रसार,
बिजलीवत् पीत सुरंग धार;
श्री पार्श्व उपद्रुत छाय लीन,
जिम नग तडिदम्बुद सांझ कीन. १३२
प्रभु ध्यानमयी असि तेजधार;
कीना दुर्जय मोह प्रहार;
त्रैलोक्य पूज्य अद्भुत अचिन्त्य,
पाया अर्हंत पद आत्मचिन्त्य. १३३
प्रभु देख कर्मसे रहित नाथ,
वनवासी तपसी आये साथ;
निजश्रम असार लख आप चाह,
धरकर शरण ली मोक्षराह. १३४
श्री पार्श्व उग्र कुल नभ सुचंद्र,
मिथ्यातम हर सत् ज्ञानचन्द्र;
स्तवन मंजरी ][ ५७