केवलज्ञानी सत् मग प्रकाश,
हूं नमत सदा रख मोक्ष-आश. १३५
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(२४) श्री महावीर जिन – स्तुति
(तोटक छंद)
तुम वीर! धवल गुण कीर्ति धरे,
जगमें शोभै गुण आत्म भरे;
जिम नभ शोभै शुचि चंद्रग्रहं,
सित कुंद समं नक्षत्र ग्रहं. १३६
हे जिन! तुम शासनकी महिमा,
भविभवनाशक कलिमांहि रमा;
निज-ज्ञान-प्रभा अनक्षीण-विभव,
मलहर गणधर प्रणमैं मत तव. १३७
हे मुनि! तुम मत स्याद्वाद अनघ,
द्रष्टेष्ट विरोध विना स्यात् वद;
तुमसे प्रतिपक्षी बाध सहित,
नहिं स्याद्वाद हैं दोष सहित. १३८
हे जिन! सुर असुर तुम्हें पूजें,
मिथ्यात्वी चित नहिं तुम पूजें;
तुम लोकत्रय हितके कर्ता,
शुचि ज्ञानमइ शिव-घर धर्ता. १३९
५८ ][ श्री जिनेन्द्र