हे प्रभु! गुणभूषण सार धरें,
श्री सहित सभा जन हर्ष करे;
तुम वपु कांति अति अनुपम है,
जगप्रिय शशि जीते रुचितम है. १४०
हे जिन! मायामद नाहिं धरो,
तुम तत्त्व-ज्ञानसे श्रेय करो;
मोक्षेच्छु कामकर वच तेरा,
व्रत-दमकर सुखकर मत तेरा. १४१
हे प्रभु! तव गमन महान हुआ,
शममत रक्षक भय हान हुआ;
जिनवर हस्ती मद स्रवन करे,
गिरि तटको खंडत गमन करै. १४२
परमत मृदुवचन-रचित भी है,
निज गुण संप्राप्ति रहित वह है;
तव मत नय-भंग विभूषित है,
सुसमन्तभद्र निर्दूषित है. १४३
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श्री सीमंधर जिन – स्तवन
(माता विना बाळकना मनना – ए देशी)
सीमंधरदेवना दरिसण विणना, पुराय क्यांथी कोड......
हांहांरे प्रभु पुराय क्यांथी कोड;
दरिसण देजो अमोने.
स्तवन मंजरी ][ ५९