सीमंधरनाथजीने.....१
वीतराग! आप चित्तमां, रहुं भाग्यनी वात (२); हां हांरे०
पण आप मारा चित्तमां, रहो जगतात! (२); हां हांरे०
सीमंधरनाथजीने.....२
मारुं मन जो प्रसन्न तो, आपनी प्रसन्नता (२); हां हांरे०
आपश्रीना प्रसादथी, होय मननी समता (२); हां हांरे०
सीमंधरनाथजीने.....३
इंद्र पण असमर्थ छे, रूप-लक्ष्मी जोवाने (२); हां हांरे०
धरणेंद्र पण अशक्त छे, तुम गुण गावाने (२); स्र्हां हांरे०
सीमंधरनाथजीने....४
आपनी आणा पाळवा, अम शक्ति आपो (२); हां हांरे०
लळी लळी नमुं हुं आपने, दास कर्मने कापो (२); हां हांरे०
सीमंधरनाथजीने....५