Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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चारित्र रत्नथी नाथजी अति दीपे,
हांरे प्रभु अप्रमत्त स्वरूपमां झूले;
हांरे मनःपर्ययज्ञान त्यां ऊपजे,
हांरे मांडी श्रेणी क्षपक. पा०
निर्मळ केवळज्ञानने प्रभु पामी,
हांरे थया मुक्ति रमणीना स्वामी;
हांरे तुज सेवक नाचे शिरनामी,
हांरे तारो दासने नाथ! पा०
श्री वीरजिनस्तवन
आज भाव साथ, हुं वंदुं जोडी हाथ;
विश्व उपकारी श्री वीरजिननाथ. (टेक)
जो जो प्रभुनी प्रतिमा केवी, शांतिमय देखाय,
निरखे भवनां पातकडां, ध्रूजीने चाल्यां जाय....आज० १
प्रभुने जोतां मनडुं मारुं, अति घणुं फुलाय;
सफळ थयो प्रभु! दिवस आजनो, धन धन तुज महिमाय....२
कर्मकलंक निवारक जिनजी, सेवकने तुं तार;
अशरणशरण! जगजनतारण! थयो सफळ मुज अवतार.....३
जिनवरदेवना दर्शन कर्याथी, समकितनो लाभ थाय;
जिन स्वरूपे लीन थवाथी, मरण समाधि थाय....आज० ४
स्तवन मंजरी ][ ६५
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