संवत ओगणीश सत्ताणुं साले, फागण सुदि बीज;
सीमंधरजिनना दरिसन करीने, सेवक थाये लीन. तमे० ६
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श्री सीमंधर जिन – स्तवन
(मथुरामां खेल खेली — ए देशीमां)
विदेही जिणंद बलिहारी, श्रीकार आनंदकारी;
आनंदकारी प्रभो आनंदकारी, विदेही जिणंद० (टेक)
जगजनमंडन पापनिकंदन (२)
प्राण जीवन जाउं वारी, हो नाथ! जग उपकारी..विदेही० १
परम कृपानिधि परम दयाळु (२)
जगदावानळवारि, हो नाथ! जगहितकारी....विदेही० २
सुख करनारा दुःख हरनारा (२)
सेवुं जिणंद मनोहारी, हो नाथ! शिवसुखकारी....विदेही० ३
निज गुणधारी कर्मो हठावी (२)
धर्मधुरंधर धोरी हो नाथ! दिलदुःखवारि....विदेही० ४
त्रिविधत्रिविधे वंदन करुं छुं (२)
तुज सेवक सुखकारी, हो नाथ! भवदुःखहारी....विदेही० ५
श्री जिनेन्द्र – स्तवन
(प्रियतम प्रभु नमीए आपने – ए देशीमां)
जय जिनवर नमीए आ....पने
जपीए पावन तुम जा....पने....जय० (टेक)
स्तवन मंजरी ][ ६७