Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ ८ ]

अनित्यादि बार भावनाना तत्त्वज्ञानपूर्वक चिंतवननुं सामान्यपणे प्रयोजन ए छे केधर्मध्यानमां जे प्रवृत्ति करे छे तेने आ द्वादशानुप्रेक्षा आधाररूप छे, अनुप्रेक्षाना बळे ध्यातापुरुष धर्मध्यानमां स्थिर रहे छे; वस्तुस्वरूपमां जे एकाग्रचित्त थाय छे ते, तेनुं विस्मरण थतां तेनाथी चलित थई जाय छे, परंतु वारंवार तेने एकाग्रता माटे जो भावनानुं आलंबन मळी जाय तो ते चलित नहि थाय. माटे आत्महितना इच्छुक जीवोए आ बार भावना भाववी जोईए.

प्रत्येक भावनानुं व्यवहार-निश्चय चिंतवन निम्न प्रकारे मोक्षेच्छु भव्य जीवोए करवुं जोईए.

अध्रुव-अनुप्रेक्षाःउत्तम भवन, सवारी, वाहन, शयन, आसन, देव, मनुष्य, राजा, माता, पिता, कुटुंबी अने सेवक आदि बधाय संयोगो अनित्य अर्थात् छूटा पडी जनार छे. बधा प्रकारनी सामग्रीपरिग्रह, इन्द्रियो, रूप, नीरोगता, यौवन, बळ, तेज, सौभाग्य अने सौंदर्य वगेरे बधुंय मेघधनुषनी जेम नश्वर छे. अहमिंद्रनां पद, चक्रवर्ती अने बळदेव आदिनी पर्यायो पाणीना परपोटा, इन्द्रधनुष, विजळी अने वादळांनी शोभा समानक्षणभंगुर छे. ज्यां, दूध अने पाणीनी जेम जीवो साथे निबद्ध, देह पण शीघ्र नष्ट थई जाय छे त्यां भोगोपभोगनां साधनभूत पृथक्वर्ती पदार्थोस्त्री आदि परिकरनो संयोग शाश्वत केम होई शके? न ज होई शके. अध्रुवभावनानुं निश्चयथी चिंतन आ प्रमाणे करवुं केपरमार्थथी ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा देव, असुर अने नरेन्द्रना वैभवोथी ने शरीरादि परपदार्थोथी तद्दन भिन्न त्रिकाळशुद्ध तेम ज शाश्वत परम पदार्थ छे. तत्त्वज्ञानपूर्वक तेनुं अनुप्रेक्षण करवाथी शाश्वत सिद्धगति प्राप्त थाय छे.

अशरण-अनुप्रेक्षाःमरण समये त्रणे लोकमां जीवने मरणथी बचावनार कोई नथी. मणि, मंत्र, औषध, रक्षक सामग्री, हाथी, घोडा, रथ अने समस्त विद्याओ वगेरे कोई शरण आपनार नथी. स्वर्ग जेनो किल्लो छे, देवो सेवक छे, वज्र शस्त्र छे अने ऐरावत गजराज छे एवा इन्द्रने पण कोई शरण नथीतेने पण मृत्युथी बचावनार कोई नथी. नव निधि, चौद रत्न, घोडा, मत्त गजेन्द्रो अने चतुरंगिणी सेना वगेरे कांई पण चक्रवर्तीने शरणरूप नथी, जोतजोतामां काळ तेने कोळियो करी जाय छे. तो पछी जीवने