Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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निश्चये शरण कोण छे? जन्म, जरा, मरण, रोग अने भय इत्यादिथी आत्मानुं रक्षण करवावाळो सर्व द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्मथी भिन्न त्रिकाळ शुद्ध निज ज्ञायक आत्मा ज शरण छे. आत्मा स्वयं पंचपरमेष्ठीरूप परिणमन करे छे तेथी आत्मा ज आत्मानुं शरण छे.

संसार-अनुप्रेक्षाःजिनेन्द्रदेवप्रणीत अध्यात्ममार्गनी अंतरमां सम्यक् प्रतीति तेम ज परिणति विना जीव अनादिकाळथी जन्म, जरा, मरण, रोग अने भयथी प्रचुर एवा पंच परवर्तनरूप संसारमां परिभ्रमण करे छे. कर्मोना निमित्ते आ जीव संसाररूपी भयानक वनमां भ्रमण करे छे; परंतु निश्चयनये जीव सदा कर्मोथी रहित छे तेथी तेने संसार ज नथी. संसारथी अतिक्रान्त निज नित्य शुद्ध आत्मा उपादेय छे अने संसारदुःखोथी आक्रांत क्षणिक दशा हेय छे

एवुं चिंतवन करवुं ते संसार-अनुप्रेक्षा छे.

एकत्व-अनुप्रेक्षाःजीव एकलो ज कर्म करे छे, एकलो ज दीर्घ संसारमां भटके छे, एकलो ज जन्मे-मरे छे अने एकलो ज उपार्जित कर्मोनां फळ भोगवे छे. जीव एकलो ज पुण्य-पाप करे छे अने एकलो ज तेना फळमां ऊंच-नीच गति भोगवे छे. निश्चयनये एकत्वनुं अनुप्रेक्षण करनार एम भावे छे केहुं त्रणे काळे एकलो ज छुं, ममत्वथी रहित छुं, शुद्ध छुं तथा सहज ज्ञान-दर्शन स्वभावथी परिपूर्ण छुं. आ शुद्ध एकत्वभाव ज सदा उपादेय छे. आत्मार्थी जीवे सदा आ प्रमाणे एकत्वनी विचारणाभावना कर्तव्य छे.

अन्यत्व-अनुप्रेक्षाःमाता-पिता, भाई, पुत्र तथा स्त्री वगेरे कुटुंबीओनो आ जीव साथे परमार्थे कोई संबंध नथी, बधां पोताना स्वार्थ वश साथे रहे छे. इष्ट जननो वियोग थतां आ जीव शोक करे छे परंतु आश्चर्य छे के पोते संसाररूपी महासागरमां गळकां खाई रह्यो छे तेनो तो शोक करतो नथी! निश्चयनये अन्यत्वभावनानो चिंतक एम चिंतवे छे के आ जे शरीरादि बाह्य द्रव्यो छे ते बधां माराथी अन्य छे. मारो तो, मारी साथे त्रिकाळ-अन्यभूत सहजशुद्ध ज्ञानदर्शनमय निज आत्मा ज छे.

अशुचित्व-अनुप्रेक्षाःअशुचिमय एवुं आ शरीर हाडकांओनुं बनेलुं, मांसथी लपेटायेलुं, चामडाथी आच्छादित कीटसमूहथी भरपूर अने सदा