Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ १० ]

मलिन छे. वळी ते दुर्गन्धथी युक्त, घृणित, गंदा मळथी भरेलुं, अचेतन, मूर्तिक, सडण-गळण स्वभाववाळुं छे, नश्वर छे. निश्चयनये आ आत्मा अशुचिमय शरीरथी भिन्न, कर्मनोकर्मथी रहित, अनंत सुखनो भंडार परमशुचिमय तथा श्रेष्ठ छे. आ रीते साधक जीवे अशुचित्वभावना निरंतर भाववी जोईए.

आस्रव-अनुप्रेक्षाःमिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योग आस्रवो छे ने कर्मबंधनुं कारण छे. प्रत्येक भेद-प्रभेद तथा स्वरूप जिनागममां कहेल छे. भाव तेम ज द्रव्य कर्मास्रवने कारणे ज जीव संसार-अटवीमां परिभ्रमण करे छे. शुभाशुभ आस्रवने लीधे जीव संसारसागरमां डूबी जाय छे, माटे आस्रवरूप क्रिया मोक्षनुं कारण नथी; जे शुभास्रवरूप क्रिया ज्ञानीने हेयबुद्धिए होय छे ते परंपराए मोक्षनुं कारण व्यवहारे कहेवाय छे. अशुभास्रवरूप क्रिया तो मोक्षनुं कारण छे ज नहि, परंतु शुभास्रवरूप क्रिया पण मोक्षनुं कारण नथी. आस्रवरूप क्रिया द्वारा निर्वाण थतुं नथी. आस्रव संसारगमननुं ज कारण छे, माटे निंदनीय छे. निश्चयनये जीवने कोई पण आस्रव नथी. तेथी आत्माने सदैव शुभाशुभ बंने प्रकारना आस्रवोथी रहित भाववो जोईए.

संवर-अनुप्रेक्षाःचल, मलिन अने अगाढ दोष टळतां निर्मळ सम्यक्त्वरूपी द्रढ कमाड द्वारा मिथ्यात्वरूपी आस्रव बंध थई जाय छे; पंचमहाव्रतयुक्त शुद्ध परिणतिथी अविरतिरूप आस्रवनो नियमथी निरोध थाय छे; अकषायरूप शुद्ध परिणतिथी कषायरूप आस्रवोनो अभाव थाय छे अने अंतरंग शुद्धि सहित शुभयोगनी प्रवृत्ति अशुभयोगनो संवर करे छे तथा शुद्धोपयोग द्वारा शुभयोगनो निरोध थई जाय छे; शुद्धोपयोगथी जीवने धर्मध्यान अने शुक्लध्यान थाय छे, तेथी ध्यान संवरनुं कारण छे.

एम

निरंतर संवरना स्वरूपनो विचार करवो जोईए. परम निश्चयनये जीवने संवर नथी, केम के ते तो द्रव्यस्वभावे सदा शुद्ध छे. तेथी द्रव्यद्रष्टिए आत्माने सदा संवरभावथी रहित सदा परिपूर्ण शुद्ध विचारवो जोईए.

निर्जरा-अनुप्रेक्षाःपूर्वे बांधेलां कर्मोनुं एकदेश खरी जवुं ते निर्जरा छे. जे कारणो संवरनां छे ते ज निर्जरानां छे. निर्जराना बे भेद छेः (१) सविपाक अने (२) अविपाक. सविपाक निर्जरा, अर्थात् उदयकाळ आवतां