Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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लोकानुप्रेक्षा ]

[ ७७
प्रत्येकाः अपि च द्विविधाः निगोदसहिताः तथैव रहिताः च
द्विविधाः भवन्ति त्रसाः अपि च द्वित्रिचतुरक्षाः तथैव पञ्चाक्षाः ।।१२८।।

अर्थःप्रत्येक वनस्पति पण बे प्रकारनी छे. ते निगोद सहित छे तथा निगोद रहित पण छे. वळी त्रस पण बे प्रकारना छे. बे इन्द्रिय, त्रण इन्द्रिय तथा चार इन्द्रिय ए त्रण तो विकलत्रय (त्रस) तथा ए ज प्रमाणे पंचेन्द्रिय (त्रस) छे.

भावार्थःजे वनस्पतिना आश्रये निगोद होय ते तो साधारण छे तेने सप्रतिष्ठित पण कहेवामां आवे छे; तथा जेना आश्रये निगोद नथी तेने प्रत्येक ज कहेवामां आवे छे अने एने ज अप्रतिष्ठित पण कहेवामां आवे छे. वळी बे इन्द्रियादिकने त्रस कहेवामां आवे छे. गोम्मटसारमां कह्युं छे के

मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंदबीज बीजरुहा
सम्मुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ।।
(गो. जी. गा. १८५)
मूलाग्रपर्वबीजाः कन्दाः तथा स्कन्धबीजाः बीजरुहाः
सम्मूर्च्छनाः च भणिताः प्रत्येकाः अनन्तकायाः च ।।
अर्थःजे वनस्पति मूळ, अग्र, पर्व, कंद, स्कंध तथा बीजथी उत्पन्न

थाय छे तथा जे संमूर्च्छन छे ते वनस्पतिओ सप्रतिष्ठित तथा अप्रतिष्ठित बंने प्रकारनी होय छे.

भावार्थःघणीखरी वनस्पतिओ मूळथी उत्पन्न थाय छे; जेम के

अदरकहळदी वगेरे वगेरे. कोई वनस्पति अग्रभागथी उत्पन्न थाय छे; जेमके गुलाब. कोई वनस्पतिनी उत्पत्ति पर्वथी थाय छे; जेम के इक्षुवेंत आदि. कोई वनस्पति कंदथी उत्पन्न थाय छे, जेम के सूरण वगेरे. कोई वनस्पति स्कंधथी उत्पन्न थाय छे; जेम के ढाक वगेरे. घणीखरी वनस्पति बीजथी उत्पन्न थाय छे; जेम के चणाघउं वगेरे, कोई वनस्पति पृथ्वी-जळ आदिना संबंधथी उत्पन्न थई जाय छे अने ते संमूर्च्छन छे; जेम के घास वगेरे. आ बधी वनस्पति सप्रतिष्ठित तथा अप्रतिष्ठित बंने प्रकारनी होय छे.