Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 138.

< Previous Page   Next Page >


Page 84 of 297
PDF/HTML Page 108 of 321

 

८४ ]

[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
हवे एकेन्द्रियादि जीवोनी पर्याप्तिनी संख्या कहे छेः
लब्धिअपुण्णे पुण्णं पज्जत्ती एयक्खवियलसण्णीणं
चदु-पण-छक्कं कमसो पज्जत्तीए वियाणेह ।।१३८।।
लब्ध्पर्याप्तके पूर्णं पर्याप्तिः एकाक्षविकलसंज्ञिनाम्
चतस्रः पञ्च षट् क्रमशः पर्याप्तयः विजानीहि ।।१३८।।

अर्थःएकेन्द्रियनी चार, विकलत्रयनी पांच अने संज्ञीपंचेन्द्रियनी छ ए प्रमाणे क्रमथी पर्याप्ति होय छे, वळी लब्ध्यपर्याप्तक छे ते अपर्याप्तक छे, तेओने पर्याप्ति नथी.

भावार्थःएकेन्द्रियादिकनी उपर प्रमाणे क्रमथी पर्याप्ति कही. अहीं असंज्ञीनुं नाम पण लीधुं नथी. त्यां संज्ञीने छ तथा असंज्ञीने पांच पर्याप्ति जाणवी. वळी निर्वृत्त्यपर्याप्त ग्रहण करतांनी साथे ज पूर्ण थशे तेथी (तेमनी) जे संख्या कही छे ते ज छे अने लब्ध्यपर्याप्त जोके पंचेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकना २४ जन्म-मरण थाय छे अने एकेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तक जीव एटला ज समयमां ६६१३२ जन्म-मरण करे छे. ए प्रमाणे एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रियना समस्त भवोनो सरवाळो करतां ६६३३६ क्षुद्रभव थाय छे.

पुढविदगागणिमारुदसाहारणथूलसुहुमपत्तेया
एदेसु अपुण्णेसु य एक्केक्के बार खं छक्कं ।।
(गो. जी. गा. १२४)
पृथ्वीदकाग्निमारुतसाधारणस्थूलसूक्ष्मप्रत्येकाः
एतेषु अपूर्णेषु च एकैकस्मिन् द्वादश खं षट्कम् ।।
अर्थःपृथ्वी, जळ, अग्नि, वायु ए चारना बादर अने सूक्ष्म भेदे

गणतां आठ भेद थया तथा वनस्पतिना बादरसाधारण, सूक्ष्मसाधारण अने प्रत्येक एम त्रण भेद छे. एम ए अगियार प्रकारना एकेन्द्रियजीवोमां दरेक जीवने एक अंतर्मुहूर्तमां ६०१२ जन्म-मरण थाय छे. तेने ११ गुणतां बधा एकेन्द्रिय जीवोना ६६१३२ भव थाय छे.