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अर्थः — एकेन्द्रियनी चार, विकलत्रयनी पांच अने संज्ञीपंचेन्द्रियनी छ ए प्रमाणे क्रमथी पर्याप्ति होय छे, वळी लब्ध्यपर्याप्तक छे ते अपर्याप्तक छे, तेओने पर्याप्ति नथी.
भावार्थः — एकेन्द्रियादिकनी उपर प्रमाणे क्रमथी पर्याप्ति कही. अहीं असंज्ञीनुं नाम पण लीधुं नथी. त्यां संज्ञीने छ तथा असंज्ञीने पांच पर्याप्ति जाणवी. वळी निर्वृत्त्यपर्याप्त ग्रहण करतांनी साथे ज पूर्ण थशे तेथी (तेमनी) जे संख्या कही छे ते ज छे अने लब्ध्यपर्याप्त जोके पंचेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तकना २४ जन्म-मरण थाय छे अने एकेन्द्रियलब्ध्यपर्याप्तक जीव एटला ज समयमां ६६१३२ जन्म-मरण करे छे. ए प्रमाणे एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रियना समस्त भवोनो सरवाळो करतां ६६३३६ क्षुद्रभव थाय छे.
गणतां आठ भेद थया तथा वनस्पतिना बादरसाधारण, सूक्ष्मसाधारण अने प्रत्येक एम त्रण भेद छे. एम ए अगियार प्रकारना एकेन्द्रियजीवोमां दरेक जीवने एक अंतर्मुहूर्तमां ६०१२ जन्म-मरण थाय छे. तेने ११ गुणतां बधा एकेन्द्रिय जीवोना ६६१३२ भव थाय छे.