लोकानुप्रेक्षा ]
ग्रहण करी छे तो पण पूर्ण थई शकी नहि तेथी तेने अपूर्ण कह्या एम सूचवे छे. ए प्रमाणे पर्याप्तिनुं वर्णन कर्युं.
हवे प्राणोनुं वर्णन करे छे. त्यां प्राणोनुं स्वरूप अने संख्या कहे छेः —
अर्थः — मन, वचन, काय, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास अने आयुनो उदय एना संयोगथी तो ऊपजे – जीवे तथा एना वियोगथी मरे तेने प्राण कहे छे, अने ते दश छे.
भावार्थः — ‘जीव’ एवो प्राणधारण अर्थ छे. त्यां व्यवहारनयथी दश प्राण छे. तेमां, यथायोग्य प्राणसहित जे जीवे तेने ‘जीव’ संज्ञा छे.
हवे एकेन्द्रियादि जीवोनां प्राणनी संख्या कहे छेः —
अर्थः — एकेन्द्रियने चार प्राण छे, बे इन्द्रिय, त्रण इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, असंज्ञीपंचेन्द्रिय तथा संज्ञीपंचेन्द्रिय पर्याप्तजीवोने अनुक्रमे छ – सात – आठ – नव – दश प्राण छे. आ प्राण पर्याप्तनी अपेक्षाए कह्या छे.
हवे ए ज जीवोने अपर्याप्तदशामां केटला प्राण छे ते कहे छेः —