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अर्थः — बंने प्रकारना अपर्याप्त ( निर्वृत्त्यपर्याप्त तथा लब्ध्यपर्याप्तक) जे एकेन्द्रिय, बे इन्द्रिय, त्रण इन्द्रिय. चार इन्द्रिय, — असंज्ञी तथा संज्ञीपंचेन्द्रियोने त्रण, चार, पांच, छ, सात ए प्रमाणे अनुक्रमे प्राण होय छे.
भावार्थः — निर्वृत्त्यपर्याप्त तथा लब्ध्यपर्याप्त एकेन्द्रियोने त्रण, बे इन्द्रियने चार, त्रण इन्द्रियने पांच, चार इन्द्रियने छ तथा असंज्ञी – संज्ञीपंचेन्द्रियने सात ए प्रमाणे प्राण होय छे.
हवे विकलत्रयजीवोनुं स्थान दर्शावे छेः —
अर्थः — बेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय ए त्रण विकलत्रय कहेवाय छे. ते जीवो नियमथी कर्मभूमिमां, अंतना अर्धा द्वीपमां अने अंतना आखा समुद्रमां होय छे, भोगभूमिमां होता नथी.
भावार्थः — पांच भरत, पांच ऐरावत अने पांच विदेह ए कर्मभूमिनां क्षेत्रमां तथा अंतना स्वयंप्रभद्वीपनी वच्चे स्वयंप्रभ पर्वत छे ते पर्वतनी पाछळना अर्धा स्वयंप्रभद्वीपमां तथा अंतना स्वयंभूरमण नामना आखा समुद्रमां आ विकलत्रय जीवो छे, तेथी अन्य जग्याए नथी.