लोकानुप्रेक्षा ]
हवे अढी द्वीपनी बहार तिर्यंचो छे तेनी व्यवस्था हेमवत्पर्वत माफक छे एम कहे छेः —
अर्थः — मनुष्यक्षेत्रनी बहार – मानुषोत्तर पर्वतनी पेली बाजुथी अंतना स्वयंप्रभद्वीपना अर्धा भागनी आ बाजु सुधीना वच्चेना सर्व द्वीपसमुद्रनां तिर्यंचो छे ते हैमवत्क्षेत्रना तिर्यंचो जेवा छे.
भावार्थः — हेमवत्क्षेत्रमां जघन्यभोगभूमि छे. मानुषोत्तर पर्वतथी आगळना असंख्यात द्वीप-समुद्र तथा अर्धा स्वयंप्रभ नामना छेल्ला द्वीप सुधी सर्व ठेकाणे जघन्यभोगभूमि जेवी रचना छे अने त्यांना तिर्यंचोनां आयुष्य-काय हेमवत्क्षेत्रना तिर्यंचो जेवां छे.
हवे जलचरजीवोनां स्थान कहे छे.
अर्थः — लवणोदधि समुद्रमां, कालोदधि समुद्रमां तथा अंतना स्वयंभूरमण समुद्रमां जलचरजीवो छे, बाकीना वच्चेना समुद्रोमां नियमथी जलचरजीवो नथी.
हवे देवनां स्थान कहे छे. त्यां प्रथम भवनवासी-व्यंतरनां स्थान कहे छेः —