Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 146-147.

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
खरभागपङ्कभागयोः भावनदेवानां भवन्ति भवनानि
व्यन्तरदेवानां तथा द्वयोरमपि च तिर्यग्लोके अपि ।।१४५।।

अर्थःखरभाग अने पंकभागमां भवनवासीओनां भवन तथा व्यंतरदेवोनां निवास छे. वळी ए बंनेनां तिर्यग्लोकमां पण निवास छे.

भावार्थःएक लाख एंशी हजार योजन जाडी पहेली रत्नप्रभा पृथ्वी छे; तेना त्रण भागमां (प्रथमना) सोळ हजार योजनप्रमाण खरभागमां असुरकुमार सिवाय बाकीना नव कुमारभवनवासीओनां भवन छे, तथा राक्षसकुल विना सात कुल व्यंतरोनां निवास छे; तथा बीजा चोराशी हजार योजनप्रमाण पंकभागमां असुरकुमार भवनवासी तथा राक्षसकुल व्यंतरो वसे छे. वळी तिर्यग्लोक अर्थात् मध्यलोक असंख्यात द्वीप-समुद्रप्रमाण छे; तेमां पण भवनवासीओनां भवन अने व्यंतरोनां निवास छे.

हवे ज्योतिषी, कल्पवासी तथा नारकीओनां निवास कहे छे

जोइसियाण विमाणा रज्जूमित्ते वि तिरियलोए वि
कप्पसुराः उड्ढम्हि य अहलोए होंति णेरइया ।।१४६।।
ज्योतिष्काणां विमानाः रज्जूमात्रे अपि तिर्यग्लोके अपि
कल्पसुराः ऊ र्ध्वं च अधोलोके भवन्ति नैरयिकाः ।।१४६।।

अर्थःएक राजु प्रमाण तिर्यग्लोकमां असंख्यात द्वीप-समुद्र छे तेना उपर ज्योतिषीदेवोनां विमान बिराजे छे; कल्पवासी ऊर्ध्वलोकमां छे तथा नारकी अधोलोकमां छे.

हवे जीवोनी संख्या कहे छे. त्यां प्रथम तेज-वायुकायना जीवोनी संख्या कहे छेः

बादरपज्जत्तिजुदा घणआवलिया-असंखभागा दु
किंचूणलोयमित्ता तेऊ वाऊ जहाकमसो ।।१४७।।