लोकानुप्रेक्षा ]
अर्थः — अग्निकाय अने वायुकायना बादरपर्याप्ति सहित जीव छे ते यथानुक्रम घनआवलीना असंख्यातमा भाग तथा कंईक न्यून लोकप्रदेशप्रमाण जाणवा.
भावार्थः — अग्निकायना जीव घनआवलीना असंख्यातमा भाग तथा वायुकायना कंईक कम लोकप्रदेशप्रमाण छे.
हवे पृथ्वी आदिनी संख्या कहे छेः —
अर्थः — पृथ्वीकायिक, अपकायिक, प्रत्येकवनस्पतिकायिक, सप्रतिष्ठित वा अप्रतिष्ठित अने त्रस ए बधा पर्याप्त-अपर्याप्त जीवो छे ते जुदा जुदा असंख्यात जगत्श्रेणिप्रमाण छे.
अर्थः — प्रत्येक वनस्पतिकाय तथा बादर लब्ध्यपर्याप्तक जीव छे ते असंख्यातलोकप्रमाण छे, ए ज प्रमाणे सूक्ष्म अपर्याप्तक पण असंख्यातलोकप्रमाण छे अने सूक्ष्मपर्याप्तक जीव छे ते संख्यातगुणा छे.