Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 151-152.

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
सिद्धाः सन्ति अनन्ताः सिद्धेभ्यः अनन्तगुणगुणिताः
भवन्ति निगोदाः जीवाः भागमनन्तं अभव्याः च ।।१५०।।

अर्थःसिद्धजीव अनंता छे, सिद्धोथी अनंतगुणा निगोदजीव छे तथा सिद्धोथी अनंतमा भागे अभव्यजीवो छे.

सम्मुच्छिया हु मणुया सेढियसंखिज्जभागमित्ता हु
गब्भजमणुया सव्वे संखिज्जा होंति णियमेण ।।१५१।।
सम्मूर्च्छनाः स्फु टं मनुजाः श्रेणिअसंख्यातभागमात्राः स्फु टम्
गर्भजमनुजाः सर्वे संख्याताः भवन्ति नियमेन ।।१५१।।

अर्थःसम्मूर्च्छनमनुष्य, जगतश्रेणिना असंख्यातमा भागमात्र छे अने सर्व गर्भजमनुष्य नियमथी संख्याता ज छे.

हवे सान्तर अने निरन्तर (ना नियमने) कहे छेः

देवा वि णारया वि य लद्धियपुण्णा हु संतरा होंति
सम्मुछिया वि मणुया सेसा सव्वे णिरंतरया ।।१५२।।
देवाः अपि नारकाः अपि च लब्ध्यपर्याताः स्फु टं सान्तराः भवन्ति
सम्मूर्छनाः अपि मनुजाः शेषाः सर्वे निरन्तरकाः ।।१५२।।

अर्थःदेव, नारकी, लब्ध्यपर्याप्तक तथा सम्मूर्छनमनुष्य एटला तो सान्तर एटले अंतर सहित छे, बाकीना सर्व जीवो निरंतर छे.

भावार्थःएक पर्यायथी अन्य पर्याय पामे, वळी पाछा फरीथी ते ने ते ज पर्याय पामे, एटलामां वच्चे जे अन्तर रहे तेने सान्तर (अन्तर सहित) कहेवामां आवे छे. अहीं नाना जीव अपेक्षाए अन्तर कह्युं छे, अर्थात् देव, नारकी, मनुष्य अने लब्ध्यपर्याप्तकजीवोनी उत्पत्ति कोई काळमां न थाय तेने पण अंतर कहे छे. तथा अंतर न पडे तेने निरंतर कहे छे. त्यां वैक्रियकमिश्रकाययोगी देवनारकीनुं तो बार मुहूर्तनुं अंतर कह्युं छे, अर्थात् कोई न ऊपजे तो बार मुहूर्त सुधी ज न ऊपजे. वळी सम्मूर्च्छनमनुष्य कोई न ज थाय तो पल्यना असंख्यातमा