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अर्थः — सिद्धजीव अनंता छे, सिद्धोथी अनंतगुणा निगोदजीव छे तथा सिद्धोथी अनंतमा भागे अभव्यजीवो छे.
अर्थः — सम्मूर्च्छनमनुष्य, जगतश्रेणिना असंख्यातमा भागमात्र छे अने सर्व गर्भजमनुष्य नियमथी संख्याता ज छे.
हवे सान्तर अने निरन्तर (ना नियमने) कहे छेः —
अर्थः — देव, नारकी, लब्ध्यपर्याप्तक तथा सम्मूर्छनमनुष्य एटला तो सान्तर एटले अंतर सहित छे, बाकीना सर्व जीवो निरंतर छे.
भावार्थः — एक पर्यायथी अन्य पर्याय पामे, वळी पाछा फरीथी ते ने ते ज पर्याय पामे, एटलामां वच्चे जे अन्तर रहे तेने सान्तर (अन्तर सहित) कहेवामां आवे छे. अहीं नाना जीव अपेक्षाए अन्तर कह्युं छे, अर्थात् देव, नारकी, मनुष्य अने लब्ध्यपर्याप्तकजीवोनी उत्पत्ति कोई काळमां न थाय तेने पण अंतर कहे छे. तथा अंतर न पडे तेने निरंतर कहे छे. त्यां वैक्रियकमिश्रकाययोगी देव – नारकीनुं तो बार मुहूर्तनुं अंतर कह्युं छे, अर्थात् कोई न ऊपजे तो बार मुहूर्त सुधी ज न ऊपजे. वळी सम्मूर्च्छनमनुष्य कोई न ज थाय तो पल्यना असंख्यातमा