लोकानुप्रेक्षा ]
अर्थः — देवोनुं तथा नारकी जीवोनुं उत्कृष्ट आयु तेत्रीस सागरनुं छे तथा तेमनुं जघन्य आयु दस हजार वर्षनुं छे.
भावार्थः — आ (आयु) सामान्य देवोनी अपेक्षाए कह्युं छे. विशेष त्रिलोकसार आदि ग्रंथोमांथी जाणवुं.
हवे एकेन्द्रिय आदि जीवोनां शरीरनी उत्कृष्ट-जघन्य अवगाहना दस गाथामां कहे छेः —
अर्थः — एकेन्द्रियचतुष्क अर्थात् पृथ्वी-अप-तेज-वायुकायना जीवोनी अवगाहना जघन्य तथा उत्कृष्ट घनअंगुलना असंख्यातमा भाग छे, त्यां सूक्ष्म अने बादर पर्याप्त-अपर्याप्तनुं शरीर नानुं-मोटुं छे तो पण घनअंगुलना असंख्यातमां भाग ज सामान्यपणे कह्युं छे. विशेष श्री गोम्मटसारमांथी जाणवुं. वळी अंगुलनुं (माप) उत्सेध अंगुल-आठ यवप्रमाण लेवुं पण प्रमाणअंगुल न लेवुं. प्रत्येक वनस्पतिकायमां उत्कृष्ट अवगाहनायुक्त कमळ छे. तेनी अवगाहना कंईक अधिक एक हजार योजन छे.