Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 165-167.

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लोकानुप्रेक्षा ]

[ ९५
हवे देव-नारकीओनुं उत्कृष्ट तेम ज जघन्य आयु कहे छेः
देवाण णारयाणं सायरसंखा हवंति तेत्तीसा
उक्किट्ठं च जहण्णं वासाणं दस सहस्साणि ।।१६५।।
देवानां नारकाणां सागरसंख्या भवन्ति त्रयस्त्रिंशत्
उत्कृष्टं च जघन्यं वर्षाणां दशसस्राणि ।।१६५।।

अर्थःदेवोनुं तथा नारकी जीवोनुं उत्कृष्ट आयु तेत्रीस सागरनुं छे तथा तेमनुं जघन्य आयु दस हजार वर्षनुं छे.

भावार्थःआ (आयु) सामान्य देवोनी अपेक्षाए कह्युं छे. विशेष त्रिलोकसार आदि ग्रंथोमांथी जाणवुं.

हवे एकेन्द्रिय आदि जीवोनां शरीरनी उत्कृष्ट-जघन्य अवगाहना दस गाथामां कहे छेः

अंगुलअसंखभागो एयक्खचउक्कदेहपरिमाणं
जोयणसहस्समहियं पउमं उक्कस्सयं जाण ।।१६६।।
अङ्गुलासंख्यातभागः एकांक्षचतुष्तकदेहपरिमाणम्
योजनसहस्रं अधिकं पद्मं उत्कृष्टकं जानीहि ।।१६६।।

अर्थःएकेन्द्रियचतुष्क अर्थात् पृथ्वी-अप-तेज-वायुकायना जीवोनी अवगाहना जघन्य तथा उत्कृष्ट घनअंगुलना असंख्यातमा भाग छे, त्यां सूक्ष्म अने बादर पर्याप्त-अपर्याप्तनुं शरीर नानुं-मोटुं छे तो पण घनअंगुलना असंख्यातमां भाग ज सामान्यपणे कह्युं छे. विशेष श्री गोम्मटसारमांथी जाणवुं. वळी अंगुलनुं (माप) उत्सेध अंगुल-आठ यवप्रमाण लेवुं पण प्रमाणअंगुल न लेवुं. प्रत्येक वनस्पतिकायमां उत्कृष्ट अवगाहनायुक्त कमळ छे. तेनी अवगाहना कंईक अधिक एक हजार योजन छे.

बारसजोयण संखो कोसतियं गोब्भिया समुद्दिट्ठा
भमरो जोयणमेगं सहस्स सम्मुच्छिमो मच्छो ।।१६७।।