Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 168-169.

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
द्वादशयोजनायामः संखः क्रोशत्रिकं ग्रैष्मिका समुद्दिष्टा
भ्रमरः योजनं एकं सहस्रं सम्मूर्च्छिमः मत्स्यः ।।१६७।।

अर्थःबे इन्द्रियमां शंख मोटो छे, तेनी उत्कृष्ट अवगाहना बार योजन लांबी छे; त्रण इन्द्रियमां गोभिका अथात् कानखजूरो मोटो छे, तेनी उत्कृष्ट अवगाहना त्रण कोश लांबी छे; चार इन्द्रियमां भ्रमर मोटो छे. तेनी उत्कृष्ट अवगाहना एक योजन लांबी छे; तथा पंचेन्द्रियमां संमूर्च्छन मच्छ मोटो छे, तेनी उत्कृष्ट अवगाहना हजार योजन लांबी छे. आ जीवो छेल्ला स्वयंभूरमण द्वीप तथा समुद्रमां जाणवा.

हवे नारकीना उत्कृष्ट अवगाहना कहे छेः

पंचसयाधणुछेहा सत्तमणरए हवंति णारइया
तत्तो उस्सेहेण य अद्धद्धा होंति उवरुवरिं ।।१६८।।
पश्चशतधनूत्सेधाः सप्तमनरके भवन्ति नारकाः
ततः उत्सेधेन च अर्धार्धाः भवन्ति उपर्युपरि ।।१६८।।

अर्थःसातमा नरकमां नारकीजीवनो देह पांचसो धनुष ऊंचो छे; तेना उपर देहनी ऊंचाई अडधी अडधी छे अर्थात् छठ्ठामां बसो पचास धनुष, पांचमामां एकसो पच्चीस धनुष, चोथामां साडाबासठ धनुष, त्रीजामां सवाएकत्रीस धनुष, बीजामां पंदर धनुष दशा आनी, अने पहेलामां सात धनुष तेर आनीए प्रमाणे जाणवुं. तेमां ओगणपचास पटल छे अने ते बधांमां जुदी जुदी विशेष अवगाहना श्री त्रिलोकसारमांथी जाणवी.

हवे देवोनी अवगाहना कहे छेः

असुराणं पणवीसं सेसं णवभावणा य दहदंडं
विंतरदेवाण तहा जोइसिया सत्तधणुदेहा ।।१६९।।
असुराणां पश्चविंशतिः शेषाः नवभावनाश्च दशदण्डाः
व्यन्तरदेवानां तथा ज्योतिष्काः सप्तधनुर्देहाः ।।१६९।।