Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 170-172.

< Previous Page   Next Page >


Page 97 of 297
PDF/HTML Page 121 of 321

 

लोकानुप्रेक्षा ]

[ ९७

अर्थःभवनवासीओमां असुरकुमारोना देहनी ऊंचाई पच्चीस धनुष अने तेना बाकीना नवे कुमारदेवोनी दस धनुष, व्यंतरोना देहनी उंचाई दस धनुष तथा ज्योतिषी देवोना देहनी उंचाई सात धनुष छे

हवे स्वर्गना देवोना देहनी उंचाई कहे छेः

दुगदुगचदुचदुदुगदुगकप्पसुराणं सरीरपरिमाणं
सत्तछहपंचहत्था चउरो अद्धद्ध हीणा य ।।१७०।।
हिट्ठिममज्झिमउवरिमगेवज्जे तह विमाणचउदसए
अद्धजुदा बे हत्था हीणं अद्धद्धयं उवरिं ।।१७१।।
द्विकद्विचतुश्चतुर्द्विकद्विककल्पसुराणां शरीरपरिमाणम्
सप्तषट्पञ्चहस्ताः चत्वारः अर्धार्धहीनाः च ।।१७०।।
अधस्तनमध्यमोपरिमग्रैवेयकेषु तथा विमानचतुर्दशसु
अर्धयुतौ द्वौ हस्तौ हीनं अर्धार्धकं उपरि ।।१७१।।

अर्थःसौधर्मऐशान युगलना देवोनो देह सात हाथ ऊंचो छे, सनत्कुमार-माहेन्द्रयुगलना देवोनो देह छ हाथ ऊंचो छे, ब्रह्म -ब्रह्मोत्तर-लावन्त-कापिष्ट ए चार स्वर्गना देवोनो देह पांच हाथ ऊंचो छे, शुक्र-महाशुक्र-सतार-सहस्रार ए चार स्वर्गना देवोनो देह चार हाथ ऊंचो छे, आनत-प्राणतयुगलना देवोनो देह साडात्रण हाथ ऊंचो छे, आरण-अच्युतयुगलना देवोनो देह त्रण हाथ ऊंचो छे, अधो ग्रैवेयकना देवोनो देह अढी हाथ ऊंचो छे, मध्यम ग्रैवेयकना देवोनो देह बे हाथ ऊंचो छे, उपरना ग्रैवेयकना देवोनो देह दोढ हाथ ऊंचो छे तथा नव अनुदिश अने पंच अनुत्तरना देवोनो देह एक हाथ ऊंचो छे.

हवे भरत-ऐरावतक्षेत्रमां काळनी अपेक्षाए मनुष्योना शरीरनी ऊंचाई कहे छेः

अवसप्पिणिए पढमे काले मणुया तिकोसउच्छेहा
छट्ठस्सवि अवसाणे हत्थपमाणा विवत्था य ।।१७२।।