Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 210-211.

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परिणाम करे छे. जेम केमोहपरिणाम, परद्रव्य साथे ममत्वपरिणाम,
अज्ञानमय परिणाम तथा ए ज प्रमाणे सुख-दुःख, जीवन-मरण आदि
अनेक प्रकारना (परिणाम) करे छे. अहीं ‘उपकार’ शब्दनो अर्थ ‘ज्यारे
उपादान कार्य करे त्यारे निमित्तकारणमां कर्तापणानो आरोप करवामां
आवे छे.’ एवो अर्थ सर्वत्र समजवो.
हवे ‘जीव पण जीवने उपकार करे छे’ एम कहे छेः
जीवा वि दु जीवाणं उवयारं कुणदि सव्वपच्चक्खं
तत्थ वि पहाणहेऊ पुण्णं पावं च णियमेण ।।२१०।।
जीवाः अपि तु जीवानां उपकारं कुर्वन्ति सर्वप्रत्यक्षम्
तत्र अपि प्रधानहेतुः पुण्यं पापं च नियमेन ।।२१०।।
अर्थःजीवो पण जीवोने परस्पर उपकार करे छे अने ते
सर्वने प्रत्यक्ष ज छे. सरदार चाकरने, चाकर सरदारने, आचार्य
शिष्यनेशिष्य आचार्यने, मातापिता पुत्रने, पुत्र मातापिताने, मित्र
मित्रने, स्त्री भरथारने इत्यादि प्रत्यक्ष जोवामां आवे छे. त्यां ए
परस्पर उपकारमां पुण्य-पापकर्म नियमथी प्रधान कारण छे.
हवे ‘पुद्गलनी पण मोटी शक्ति छे’ एम कहे छेः
का वि अपुव्वा दीसदि पुग्गलदव्वस्स एरिसी सत्ती
केवलणाणसहाओ विणासिदो जाइ जीवस्स ।।२११।।
का अपि अपूर्वा दृश्यते पुद्गलद्रव्यस्य ईदृशी शक्तिः
केवलज्ञानस्वभावः विनाशितः याति जीवस्य ।।२११।।
अर्थःपुद्गलद्रव्यनी पण कोई एवी अपूर्व शक्ति जोवामां
आवे छे के जीवनो केवळज्ञान स्वभाव छे ते पण जे शक्तिथी विणसी
जाय छे.
भावार्थःजीवनी अनंत शक्ति छे तेमां केवलज्ञान शक्ति एवी
छे के जेनी व्यक्ति (प्रकाश-प्रगटता) थतां सर्व पदार्थोने ते एक काळमां जाणे
लोकानुप्रेक्षा ]
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