Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 212-213.

< Previous Page   Next Page >


Page 116 of 297
PDF/HTML Page 140 of 321

 

background image
छे. एवी व्यक्ति (प्रगटता)ने पुद्गल नष्ट करे छेप्रगट थवा देतुं नथी.
ए अपूर्व शक्ति छे. ए प्रमाणे पुद्गलद्रव्यनुं निरूपण कर्युं.
हवे धर्म अने अधर्मद्रव्यनुं स्वरूप कहे छेः
धम्ममधम्मं दव्वं गमणट्ठाणाण कारणं कमसो
जीवाण पुग्गलाणं बिण्णि वि लोगप्पमाणाणि ।।२१२।।
धर्मं अधर्मं द्रव्यं गमनस्थानयोः कारणं क्रमशः
जीवानां पुद्गलानां द्वे अपि लोकप्रमाणे ।।२१२।।
अर्थःजीव अने पुद्गल ए बंने द्रव्योने जे अनुक्रमे गमन
अने स्थितिनां सहकारीकारण छे ते धर्म अने अधर्मद्रव्य छे, अने ते
बंनेय लोकाकाशप्रमाण प्रदेशने धारण करे छे.
भावार्थःजीव-पुद्गलोने गमनमां सहकारीकारण तो धर्मद्रव्य
छे तथा स्थितिमां सहकारीकारण अधर्मद्रव्य छे; अने ते बंने
लोकाकाशप्रमाण छे.
हवे आकाशद्रव्यनुं स्वरूप कहे छेः
सयलाणं दव्वाणं जं दादुं सक्कदे हि अवगासं
तं आयासं दुविहं लोयालोयाण भेएण ।।२१३।।
सकलानां द्रव्याणां यत् दातुं शक्नोति हि अवकाशम्
तत् आकाशं द्विविधं लोकालोकयोः भेदेन ।।२१३।।
अर्थःजे समस्त द्रव्योने अवकाश आपवामां समर्थ छे ते
आकाशद्रव्य छे अने ते लोक तथा अलोकना भेदथी बे प्रकारनुं छे.
भावार्थःजेमां सर्व द्रव्यो रहे एवा अवगाहनगुणने जे धारे
छे ते आकाशद्रव्य छे, जेमां (पोतासहित बीजां) पांच द्रव्यो रहे छे
ते तो लोकाकाश छे तथा जेमां (आकाश सिवाय बीजां) अन्य द्रव्यो
नथी ते अलोकाकाश छे. ए प्रमाणे आकाशद्रव्यना बे भेद छे.
११६ ]
[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा