Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 216-217.

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प्रदेश अने एक कालाणुद्रव्य ए प्रमाणे सर्व रहे छे. हवे ए आकाशनो
प्रदेश एक पुद्गलपरमाणु बराबर छे. जो अवगाहनशक्ति न होय तो
(ए प्रमाणे) शी रीते रहे?
हवे काळद्रव्यनुं स्वरूप कहे छेः
सव्वाणं दव्वाणं परिणामं जो करेदि सो कालो
एक्केकासपएसे सो वट्टदि एक्किको चेव ।।२१६।।
सर्वेषां द्रव्याणां परिणामं यः करोति सः कालः
एकैकाशकाशप्रदेशे स वर्तते एकैकः च एव ।।२१६।।
अर्थःजे सर्व द्रव्योने परिणाम करे छे ते काळद्रव्य छे अने
ते एक एक आकाशना प्रदेशमां एक एक कालाणुद्रव्य वर्ते छे.
भावार्थःसर्व द्रव्योने प्रतिसमय पर्याय ऊपजे छे अने विणसे
छे; एवा परिणमनने निमित्तमात्र काळद्रव्य छे. लोकाकाशना एक एक
प्रदेशमां एक एक काळाणु रहे छे अने ते निश्चयकाळ छे.
हवे कहे छे केपरिणमवानी स्वभावभूत शक्ति तो सर्व
द्रव्योमां छे, त्यां अन्य द्रव्य निमित्तमात्र छेः
णियणियपरिणामाणं णियणियदव्वं पि कारणं होदि
अण्णं बाहिरदव्वं णिमित्तमित्तं वियाणेह ।।२१७।।
निजनिजपरिणामानां निजनिजद्रव्यं अपि कारणं भवति
अन्यत् बाह्यद्रव्यं निमित्तमात्रं विजानीत ।।२१७।।
अर्थःसर्व द्रव्यो पोतपोताना परिणामोनां उपादानकारण छे
अने अन्य बाह्य द्रव्य छे, ते अन्यने निमित्तमात्र जाणो.
भावार्थःजेम घट आदिनुं माटी उपादानकारण छे अने
चाक-दंडादि निमित्तकारण छे, तेम सर्व द्रव्यो पोतपोताना परिणामनां
उपादानकारण छे अने काळद्रव्य निमित्तकारण छे.
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा