Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 227-229.

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छे पण जे अर्थक्रियारूप नथी ते तो आकाशना फूलनी माफक शून्यरूप
छे.
हवे सर्वथा नित्य-एकान्तमां अर्थक्रियाकारीपणानो अभाव दर्शावे
छेः
परिणामेण विहीणं णिच्चं दव्वं विणस्सदे णेव
णो उप्पज्जदि य सया एवं कज्जं कहं कुणदि ।।२२७।।
परिणामेन विहीनं नित्यं द्रव्यं विनश्यति नैव
न उत्पद्यते च सदा एवं कार्यं कथं कुरुते ।।२२७।।
अर्थःपरिणाम रहित जे नित्य द्रव्य छे ते कदी विणसे-ऊपजे
नहि, तो ते कार्य शी रीते करे? ए प्रमाणे जे कार्य न करे ते वस्तु
ज नथी. जो ते ऊपजे
विणसे तो सर्वथा नित्यपणुं ठरतुं नथी.
हवे क्षणस्थायी (सर्वथा अनित्यबौद्ध)ने कार्यनो अभाव दर्शावे
छेः
पज्जयमित्तं तच्चं विणस्सरं खणे खणे वि अण्णण्णं
अण्णइदव्वविहीणं ण य कज्जं किं पि साहेदि ।।२२८।।
पर्यायमात्रं तत्त्वं विनश्वरं क्षणे क्षणे अपि अन्यत् अन्यत्
अन्वयिद्रव्यविहीनं न च कार्यं किमपि साधयति ।।२२८।।
अर्थःजो क्षणस्थायीपर्यायमात्र तत्त्व क्षण-क्षणमां अन्य
अन्य थाय एवुं विनश्वर मानीए तो ते अन्वयी द्रव्यथी रहित थतुं
थकुं कांई पण कार्य साधतुं नथी. क्षणस्थायी-विनश्वरने वळी कार्य शानुं?
(न ज होय).
हवे अनेकान्त वस्तुमां ज कार्यकारणभाव बने छे एम दर्शावे
छेः
णवणवकज्जविसेसा तीसु वि कालेसु होंति वत्थूण
एक्केक्कम्मि य समये पुव्वुत्तरभावमासिज्ज ।।२२९।।
लोकानुप्रेक्षा ]
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