Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 232-233.

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पर्यायोरूपे प्रगट परिणमे छे; ते प्रथम द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावनी सामग्रीमां
वर्ते छे पछी कार्यने
पर्यायने प्राप्त थाय छे.
भावार्थःजेम कोई जीव पहेलां शुभपरिणामरूपे प्रवर्ते छे
पछी स्वर्गने प्राप्त थाय छे, तथा (कोई जीव) पहेलां अशुभपरिणाम-
रूपे प्रवर्ते छे पछी नरकादि पर्यायने प्राप्त थाय छे, एम समजवुं.
हवे ‘जीवद्रव्य पोतानां द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावमां रहीने ज नवीन
पर्यायरूप कार्यने करे छे’ एम कहे छेः
ससरूवत्थो जीवो कज्जं साहेदि वट्टमाणं पि
खेत्ते एकम्मि ठिदो णियदव्वे संठिदो चेव ।।२३२।।
स्वस्वरूपस्थः जीवः कार्यं साधयति वर्त्तमानं अपि
क्षेत्रे एकस्मिन् स्थितः निजद्रव्ये संस्थितः चैव ।।२३२।।
अर्थःजीवद्रव्य छे ते पोताना चेतनास्वरूपमां (भावमां)
पोताना ज क्षेत्रमां, पोताना ज द्रव्यमां तथा पोताना परिणमनरूप
समयमां रहीने ज पोताना पर्यायस्वरूप कार्यने साधे छे.
भावार्थःपरमार्थथी विचारीए तो पोतानां ज द्रव्य-क्षेत्र-काळ
-भावस्वरूप थतो थको जीव, पर्यायस्वरूप कार्यरूपे परिणमे छे अने
परद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भाव छे ते तो निमित्तमात्र छे.
हवे अन्यरूप थईने कार्य करे तो तेमां दूषण दर्शावे छेः
ससरूवत्थो जीवो अण्णसरूवम्मि गच्छदे जदि हि
अण्णोण्णमेलणादो एकसरूवं हवे सव्वं ।।२३३।।
स्वस्वरूपस्थः जीवः अन्यस्वरूपे गच्छेत् यदि हि
अन्योन्यमेलनात् एकस्वरूपं भवेत् सर्वं ।।२३३।।
अर्थःजो जीव पोताना स्वरूपमां रहीने पण परस्वरूपमां
जाय तो परस्पर मळवाथी बधांय द्रव्यो एकरूप बनी जाय; ए महान
लोकानुप्रेक्षा ]
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