Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 236-237.

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भावार्थःनिरंश, क्षणिक अने निरन्वयी वस्तुमां अर्थक्रिया
थाय नहि; माटे वस्तुने कथंचित् अंशसहित, नित्य तथा अन्वयी मानवी
योग्य छे.
हवे द्रव्यमां एकत्वपणानो निश्चय करे छेः
सव्वाणं दव्वाणं दव्वसरूवेण होदि एयत्तं
णियणियगुणभेएण हि सव्वाणि वि होंति भिण्णाणि ।।२३६।।
सर्वेषां द्रव्याणां द्रव्यस्वरूपेण भवति एकत्वम्
निजनिजगुणभेदेन हि सर्वाणि अपि भवन्ति भिन्नानि ।।२३६।।
अर्थःबधांय द्रव्योने द्रव्यस्वरूपथी तो एकत्वपणुं छे तथा
पोतपोताना गुणोना भेदथी सर्व द्रव्यो भिन्नभिन्न छे.
भावार्थःद्रव्यनुं लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप सत् छे. हवे
ए स्वरूपथी तो सर्वने एकपणुं छे. तथा चेतनता-अचेतनता आदि
पोतपोताना गुणथी भेदरूप छे माटे गुणना भेदथी बधां द्रव्यो न्यारां
न्यारां छे. वळी एक द्रव्यने त्रिकाळवर्ती अनंत पर्याय छे, ते बधा
पर्यायोमां द्रव्यस्वरूपथी तो एकता ज छे; जेम चेतनना पर्याय बधा
चेतनस्वरूप छे. तथा प्रत्येक पर्याय पोतपोताना स्वरूपथी भिन्न-भिन्न
पण छे, भिन्न-भिन्नकाळवर्ती छे तेथी भिन्न-भिन्न पण कहीए छीए;
परंतु तेमने प्रदेशभेद नथी. तेथी एक ज द्रव्यना अनेक पर्याय होय
छे तेमां विरोध नथी.
हवे द्रव्यने गुण-पर्यायस्वभावपणुं दर्शावे छेः
जो अत्थो पडिसमयं उप्पादव्वयध्रुवत्तसब्भावो
गुणपज्जयपरिणामो सो संतो भण्णदे समये ।।२३७।।
यः अर्थः प्रतिसमयं उत्पादव्ययध्रुवत्वसद्भावः
गुणपर्यायपरिणामः सः सत् भण्यते समये ।।२३७।।
अर्थःअर्थ एटले वस्तु छे; ते समये समये उत्पाद-व्यय
लोकानुप्रेक्षा ]
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